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रायपुर: 46 साल बाद मौत की सजा, मासूम को जिंदा जलाने वाले को फांसी; एकतरफा प्यार में दिया खौफनाक वारदात को अंजाम…..!

रायपुर: 4 साल के मासूम को जिंदा जलाने वाले को मिली फांसी; कोर्ट ने कहा- “ऐसे लोग समाज में रहने लायक नहीं”

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के उरला इलाके में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। 2022 में 4 साल के मासूम हर्ष की जघन्य हत्या के मामले में रायपुर की अदालत ने दोषी पंचराम को मौत की सजा सुनाई है। अदालत ने इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ (सबसे दुर्लभ मामलों में से एक) मानते हुए कहा कि ऐसे अपराधी को समाज में रहने का कोई हक नहीं है। रायपुर में 46 साल बाद किसी आरोपी को फांसी की सजा सुनाई गई है।

घटना का पूरा विवरण

2022 में उरला इलाके में 4 साल का मासूम हर्ष अपने घर से अचानक गायब हो गया। परिवार ने बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराई। बच्चे की तलाश के दौरान पुलिस को एक सुनसान जगह पर जली हुई हालत में उसका शव मिला। यह दृश्य इतना भयावह था कि लोगों के रौंगटे खड़े हो गए।

जांच के दौरान पुलिस ने पड़ोस में रहने वाले पंचराम पर शक जताया और उसे हिरासत में लिया। पूछताछ में पंचराम ने चौंकाने वाला खुलासा किया। उसने कबूल किया कि उसने मासूम हर्ष को बहलाकर अपने साथ ले गया और पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया। पंचराम ने बताया कि वह बच्चे की मां से एकतरफा प्यार करता था, लेकिन महिला ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। अपनी खीझ और बदले की भावना में उसने इस घिनौनी वारदात को अंजाम दिया।

कोर्ट का कड़ा फैसला

इस मामले की सुनवाई में 2.5 साल लगे। अदालत ने 19 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें सबसे अहम गवाही हर्ष के बड़े भाई दिव्यांश की रही। अदालत ने पंचराम को दोषी मानते हुए उसे मौत की सजा सुनाई।

फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा,
“यह अपराध न केवल क्रूरता की पराकाष्ठा है, बल्कि समाज के लिए एक गंभीर खतरा भी है। ऐसे अपराधी को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है।”

घटनास्थल और पंचराम का दावा

घटना के दिन हर्ष अपने बड़े भाई के साथ घर के बाहर खेल रहा था। पंचराम ने दोनों बच्चों को बहलाने की कोशिश की और नाश्ता कराने के बहाने साथ ले जाना चाहा। हर्ष पंचराम के साथ चला गया, लेकिन बड़ा भाई दिव्यांश साथ जाने से मना कर दिया। इस फैसले ने उसकी जान बचा ली।

पंचराम ने अदालत में झूठ बोलते हुए कहा कि वह निर्दोष है और बच्चे उसके साथ नाश्ता करने गया था। उसने पुलिस पर जबरन मामला दर्ज कराने का आरोप लगाया। लेकिन गवाहों और सबूतों ने उसकी सफाई को पूरी तरह खारिज कर दिया।

बड़े भाई की गवाही ने बदली दिशा

मामले में दिव्यांश की गवाही निर्णायक साबित हुई। जब अदालत में दिव्यांश ने आरोपी की पहचान की, तो वह डर के कारण सहम गया। न्यायाधीश ने बच्चे को आराम से बयान देने का मौका दिया। दिव्यांश ने साहस दिखाते हुए पूरी घटना अदालत के सामने रखी।

घटना का प्रभाव और समाज की प्रतिक्रिया

यह मामला छत्तीसगढ़ में चर्चा का विषय बना रहा। लोगों ने इस घटना की निंदा करते हुए सख्त सजा की मांग की। पंचराम की गिरफ्तारी और अदालत के फैसले ने यह संदेश दिया कि कानून का डर अपराधियों के मन में होना चाहिए।

46 साल बाद मौत की सजा

यह फैसला इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि रायपुर में 46 साल बाद किसी मामले में मौत की सजा दी गई है। इससे पहले 1978 में एक अन्य जघन्य अपराध में यह सजा सुनाई गई थी।

निष्कर्ष

यह घटना न केवल मानवता पर एक गहरा धब्बा है, बल्कि यह भी याद दिलाती है कि समाज में ऐसे अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कितनी जरूरी है। अदालत का यह फैसला न्याय की जीत है और एक संदेश है कि जघन्य अपराधों के लिए समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

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