कोरबा: कोरबा-चांपा और उरगा-पत्थलगांव फोरलेन सड़क निर्माण के लिए राख आपूर्ति के नाम पर 3.40 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा सामने आया है। ठेकेदार ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की फर्जी एनओसी का इस्तेमाल कर 1.88 लाख क्यूबिक मीटर राख की आपूर्ति का बोगस बिल प्रस्तुत किया और भुगतान प्राप्त किया। इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन 20 दिन बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
घोटाले की शुरुआत:
यह घोटाला तब उजागर हुआ जब छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी (सीएसपीजीसीएल) ने पिछले तीन सालों से राख परिवहन के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए थे, ताकि एनजीटी के निर्देशों का पालन किया जा सके। हालांकि, अधिकारियों ने इस प्रक्रिया का गलत फायदा उठाया और इसे भ्रष्टाचार का एक जरिया बना दिया।
फर्जी एनओसी का खेल:
24 अगस्त 2024 को “हेमस कॉर्पोरेशन” नामक एक कंपनी ने एनएचएआई का फर्जी पत्र पेश किया, जिसमें 56,759 क्यूबिक मीटर राख को उरगा-पत्थलगांव फोरलेन और 1,32,230 क्यूबिक मीटर राख कोरबा-चांपा फोरलेन में आपूर्ति करने का दावा किया गया था। कुल 1.88 लाख क्यूबिक मीटर राख आपूर्ति का बोगस बिल प्रस्तुत कर 180 रुपये प्रति क्यूबिक मीटर की दर से भुगतान प्राप्त किया गया।
एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डीडी परलावार ने संबंधित विद्युत संयंत्रों को इस फर्जी एनओसी की जानकारी दी और एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की।
पुराना मामला भी सामने आया:
यह पहली बार नहीं है जब राख आपूर्ति में फर्जीवाड़ा हुआ हो। पहले भी मानिकपुर की बंद खदान में 2.71 लाख क्यूबिक मीटर राख के फर्जी बिलों के जरिए लगभग 5 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। इस मामले में पर्यावरण संरक्षण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी पी. पांडेय ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
अब तक की स्थिति:
दोनों मामलों में भुगतान तत्कालीन अधीक्षण यंत्री के कार्यकाल में हुआ, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बावजूद इसके, फर्जीवाड़े की पुष्टि होने के बाद भी संबंधित विभागों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। पर्यावरण अधिकारी पांडेय ने कहा कि दोषियों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।
आगे की कार्रवाई:
एनएचएआई द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज करने की सिफारिश के बावजूद, कार्रवाई में देरी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे मामलों में तुरंत जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है। प्रशासन को चाहिए कि वे इस घोटाले पर कड़ी नजर रखें, ठेकेदारों और संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करें और भ्रष्टाचार के इस खेल को खत्म करें। सरकारी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार ने राज्य के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और विकास को बाधित किया है। अगर समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो ऐसे घोटाले बढ़ सकते हैं।